मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

               गजल
मतलब के सब संगी मतलबी छै लोक
कियो मनाबै छै ख़ुशी कियो मनाबै छै शोक

स्वार्थक वशीभूत दुनिया की जाने ओ प्रेम
प्रेम पथ पर किएक कांट बोए छै लोक

सभक मोन में भरल छै घृणाक जहर
दोसर के सताबै में तृष्णा मेटाबै छै लोक

ललाट शोभित चानन गला पहिर माला
भीतर भीतर किएक गला कटै छै लोक

सधुवा मनुखक जीवन भगेल बेहाल
कदम कदम पर जाल बुनैत छै लोक

अप्पन ख़ुशी में ओतेक ख़ुशी कहाँ होए छै
जतेक आनक दुःख में ख़ुशी होए छै लोक

अप्पन दुःख में ओतेक दुखी कहाँ होए छै
जतेक आनक ख़ुशी में दुखी होए छै लोक

अप्पन चिंतन मनन कियो नहि करेय
आनक कुचिष्टा में जीवन बिताबै छै लोक

विचित्र श्रृष्टिक विचित्र पात्र छै सब लोक
"प्रभात" के किएक कुदृष्टि सं देखै छै लोक
.....................वर्ण:-१६ ................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

सोमवार, 27 फरवरी 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट

गीत:-
सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना //२
सजनी सजनी ऐ हमर सजनी मुखड़ा //
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना //२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
ह्रिदय में हमर अहिं बास करैतछि
हमर मोनक सभटा आस पुरबैछि
हमर नयनक अहिं तारा छि सजना
हमर जीवनक अहिं सहारा छि सजना //२

सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
कहू ने कहू हम सभटा जनैतछि
अहाँक प्रेम पाबी हम हर्षित रहैतछि
अहाँ हमरा मोन में हुलास बढ़बैतछि
अप्पन प्रेम नै टुटत इ बिस्वास हम दैतछि//२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
जन्म जन्म के हम छि पियासल
अहिं सं जीवनक उत्कर्ष अछि बाँचल
अहींक नाम सं खनकैय हमर कंगना
हमर दिल में अहिं धरकै छि सजना//२


सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
जन्म जन्म तक हम रहब अहींक संग संग
अहींक प्रीत सं भरल अछि हमर मोनउपवन
अहाँक प्रीतक डोर सं बान्हल रहब रजनी
जीव नै सकब हम अहाँ बिनु सजनी //२


रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

गीत @प्रभात राय भट्ट

गीत
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
पूर्णिमा सन अहांक सूरत देखिला फाटेय हिया //२
थर थर कपैय देह मोर धरकैय करेज पिया
यौ पिया कोना घुंघटा उठाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२
...
पहिल प्रेमक पहिल मिलन में एना करैछी किया
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
अहि हमर लाजक घुंघटा उठा दिय ने पिया
नजैर कोना हम मिलाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२

एकटा बात पुछू पिया कहू साँच साँच कहब तं
हमरा विनु कोना रहब अहाँ जौं हम नै रहब तं
धनि जे बजलौं फेर नै बाजब कहू हाँ कहब तं
अहाँ विनु जिब नै सकब हम जौं अहाँ नै रहब तं //२

संग छुटतै नै अप्पन टुटतै नै पिरितिया
खा कS कहैछी सजना हम इ किरिया
छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजनी तोड़ब नै प्रीत //२

छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजना तोड़ब नै प्रीत
अहिं सं जगमग करेय हमर जीवन ज्योति
अहिं छि सजनी हमर मोनक हिरामोती //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

गजल @प्रभात राय भट्ट

गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू

अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू

अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू

देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहु

मोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू

नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू

बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू
.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
कतय भेटत एहन प्रेम जे मीत अहाँ देलौं
मित्रताक कर्मपथ पर मोन जीत अहाँ लेलौं
स्वार्थक मीत जग समूचा,मोन मीत नहीं कियो
धन्य सौभाग्य हमर मोन मीत बनी अहाँ एलौं

स्वार्थक मेला में भोगलौं हम वर वर झमेला
हर झमेला में बनिक सहारा मीत अहाँ एलौं

मजधार डूबैत हमर जीवनक जीर्ण नाव
नावक पतवार बनी मलाह मीत अहाँ एलौं

निस्वार्थ भाव अहाँ मित्रताक नाता जोड़ी लेलहुं
हर नाता गोटा सं बड़का रिश्ता मीत अहाँ देलौं

नीरसल जिन्गीक हर क्षण भेल छल उदास
उदास जिन्गीक ठोर पर गीत मीत अहाँ देलौं

संगीतक ध्वनी सन निक लगैय मीतक प्रीत
कृष्ण सुदामाक प्रतिक बनी मीत अहाँ एलौं
...............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
राष्ट्रीयता भनेको राष्ट्रको माटो संग जसको प्रगाढ़ प्रेम हुन्छ,जसले राष्ट्रको प्राकृतिक भाषा भेष संस्कृति पर्यावरण जीवजन्तु  को संगरक्षण गर्छ र कुनै  प्रकार को    छुवाछुत लिंगभेद  रंगभेद न राखी  सबै लाई समान्ताको व्यबहार गर्दछ  त्यों नै राष्ट्रबदी हो ! तर कथित राष्ट्रबादी  भनाउदो सामन्तबादीहरु  विभेदपूर्ण एकात्मक शाशन 
प्रणाली लाई शोषण गर्ने उदेश्य ले  जनतामा लागु गर्ने र गराउने प्रक्रिया लाई नै राष्ट्रबाद भने ठान्दछन ! र जसले यी सामन्तीहरुको अन्त्य गर्न खोज्दछन र विरुद्ध मा आवाज उठाउदछन तिनीहरु लाई देश द्रोह र राष्ट्रघात को संज्ञा दिई दबाउने काम गरिन्छ ! तर आज संसार भरि आर्थिक र स्वतन्त्रता को क्रान्ति मा जनताहरु तिब्रगतिले बाटोमा उर्लिएको छ ढिलो चाडो चरणबद्ध तरिकाले विश्व भरिका  सामन्तीहरुको अन्त्य निश्चित छ यसको ज्वलन्त उदाहरण हो लिबिया को क्रुर र दमनकारी शाषक  कर्नल  मोहमद गादाफी यी क्रुर सामन्ती शाषक र हिंशक प्राणी बाघ को तुलनात्मक अन्त्येष्ठी एउटै प्रकार को हुन्छ बाघ जब बुढो हुन्छ  सिकार गर्न असक्षम हुन्छ जसले गर्दा आलो रगत् र मासुको चोक्टा खान पाउदैन र उसको शक्ति मा ह्रास हुदै जान्छ  तब बाघ माथि साना मसिना जीवजन्तु हरु आक्रमण गर्छ बाघ लाई आहार बनाउछन र बाघ निरिह भएर हेर्नु बाहेक केहि गर्न सक्दैन अन्तः बाघ को अन्त्य हुन्छ ! ठिक यसै प्रकार सामन्ती शाषक को अन्त्य पनि यस्तै हुन्छ जब जनतामा चेतनाको विकाश हुन्छ तब जनता द्द्वारा युगान्तकारी संग्राम हुन्छ र जनता को विजय हुन्छ ! देस सत्ता शाशन जनताको हात मा आउँछ र सामन्तीहरु जनता लाई दमन शोषण गर्न पाउदैन तब क्रुर शाषकहरु बुढो बाघ जस्तै निष्क्रिय र निरिह हुन्छ ! अनि राष्ट्र द्द्वारा शोषित उपेक्षित हरेक समुदायहरु हरेक वर्ग लिंग का नागरिकहरु आफ्नो अधिकार सुनिश्चित को आवाज उठाउदै देशको प्रत्येक निकाय समावेशीकरण हुदैजान्छ र सामन्तबादहरुका उतराधिकारीहरुको अस्तित्वमा ह्रास हुदैजान्छ र निरिह भएर हेर्ने बाहेक अरु केहि गर्न सक्दैन अन्तः सामन्तीको अवसान माथि सर्वहारावर्ग को विजय हुन्छ ! आज को परिप्रेक्ष मा केहि यस्तै हालत  छ सामन्तबाद का  उतराधिकारीहरुको जसले आफ्नो अवसान निश्चित हुने भय डर त्राश ले त्रशित भई खोक्रो राष्ट्रवाद का नारा लगाएर आम जनताहरु लाई झुक्याउन र पुनः आफ्नो काया पलट गर्ने दाउपेचमा लागि परेका छन् !
लेखक:-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 5 फ़रवरी 2012


गजल@प्रभात राय भट्ट


                                       गजल
चंचल मोनक भीतर परम चैतन्य उर्जा सुषुप्त भेल अछि 
मोह लोभ क्रोध रिस रागक तेज सं आत्मा सुषुप्त भेल अछि

दुष्ट  मनुख आतुर अछि करैए लेल मनुखक सोनित पान
दानवीय प्रबृति केर दम्भ सं मानव रूप विलुप्त भेल अछि

जन्मलैत छलहूँ बालेश्वर, कुमारी कन्या पूजैत छल संसार
आयु बढ़ैत सभ सुमति बिसारि कुमति संग गुप्त भेल अछि

स्वार्थलिप्सा केर आसक्त मनुख जानी सकल नहीं जीवन तत्व
परालौकिक परमानन्द बिसारि सूरा सुंदरी में लिप्त भेल अछि

दुर्जन बनल संत चरित्रहीन महंथ बदलैत ढोंगी रूप
अकर्मनिष्ठक कुकर्म सं गुण शील विवेक सुषुप्त भेल अछि
....................वर्ण-२४......................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बुद्धिमें ब्याधि!

मन के खींचय छै दस गो घोड़ा, नाम ओकर छै ज्ञानेन्द्रिय!
नियम संयम अनुशासन बान्हय लोक बनै छै जितेन्द्रिय!

विश्वंभर भर सभक जीवन - मुँह तैयो अनकर ताकी,
पेटक अग्नि धधकैत ज्वाला - शम्‌ हो छुधा काजहि काजी!
मन के .....

आदम जीवन घुमुवा अनर्गल - तैयो गाड़ी चैल चुकलै,
समय बितैत संस्कृति सहारे - आधुनिकता में प्रविसि भेलै,
मन के खींचय....

मैटक गुण सँ खेती उपजय, चरितहि उपजय गुणी ज्ञानी,
भोगक त्यागहि तपी बनि साफल बनय संत-मुनि-ऋषि जानी,
मन के खींचय.....

वेद-पुराण वा श्रुति-स्मृति ईष्टक ऐश्वर्य अनन्त छै,
पठन मनन निश्छल कर्महि सँ जानैत जीवन अन्त छै,
मन के खींचय....

राजस तामश सात्त्विकता के मिलल प्रकृति बखान छै,
उचित लवण संयोग मात्र सँ तिमन महिमा महान छै,
मन के खींचय....

वात पित्त ओ कफ के मल-जल त्यागैत शरीर सुखहाल छै,
विभिन्न ब्याधि के संक्रमण सँ मानव जीवन बदहाल छै,
मन के खींचय.....

कृष्ण कहैथ जे राग-द्वेष बस सभटा फसादक जैड़ छै,
निश्छल कर्म आ समता दृष्टि तखनहि भेटैय मोक्ष छै,
मन के खींचय....

गीता ज्ञान सँ बनल जनकजी राजा एक विदेह छै,
मिथिला धरती अयली सीता तैयो सभके संदेह छै,
मन के खींचय....

अपन आन के माया बड़का घेरने ‘प्रवीण’ के दहोंदिश सँ,
जँ चिक्का फाँगय के होइ तँ बचय के हेतै छिटकी सँ,
जँ चिक्का फाँगय के होइ तँ बचय के हेतै घूरकी सँ,
हो‍ऽऽ जँ चिक्का फाँगयके होइ तँ बचयके हेतै भभकी सँ,
छिटकी घूरकी भभकी सभटा फुसियांही के धमकी सँ,
मन के खींचय....

हरिः हरः!

भेदभावों की चिंगारी @प्रभात राय भट्ट

भेदभावों की चिंगारी ने 
हमारे  पूर्वजों की आत्मा को जलाया था 
जलते हुए आत्माओं का अंगार बनके 
मै इस जहाँ में आया था
मेरे साथ भी वही हुवा 
जो न होना था !!
 
मैंने  उस दुःख दर्द को
बड़ी मुश्किल से झेला था
आप तो एक बार मरोगे
मै तो सौ बार मरा था !!
 
फिर मैंने मेरे सोये हुए
आत्मा को जगाया था
मेरी आत्मा मुझे
दुत्कार रही थी
मेरी आत्मा मुझे
ललकार रही थी
मेरी आत्मा मुझे से
चीत्कार रही थी !!
 
उठो जागो मांगो अपना अधिकार
मिटा दो भेदभावों की अहंकार
बनालो अपनी खुद का पहिचान
तेरा स्वाभिमान से बढ़कर
इस जहाँ में कुछ और तो नहीं!!
 
जरा याद करो
स्वाभिमानी युग पुरुष को
तेरा पहिचान बनाने की खातिर
रघुनाथ ठाकुर चढ़ें थे वलिदान
दुर्गानन्द झा ने भी दी थी कुर्वानी
गजू बाबु की क्या कहना
उन्होंने ही तो बचा राखी थी
हम सबों की पहिचान !!
 
रमेश मंडल की आहुति से
हुवा था युगांतकारी संग्राम
मधेश आन्दोलन को
मिली था एक नयी आयाम !!
 
हमारे बाजुवों में भी वह ताकत है
हम बदल देंगे
अपनी हाथो की लकीरों को
तोड़ देंगे गुलामी की जंजीरों को   !!
 
आओ मेरे जिगर वाले भाइयों
अपना मंजिल
अपना यासियाना बनातें है
हम सब मिलके 
स्वतंत्रता की गीत गातें है
एक मधेश एक प्रदेश  बनाते है  
मातृभूमि को स्वतंत्र करके
पुत्र धर्म निभाते है !!
जय मधेश !! जय मधेश !! जय मधेश !!
 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012


गीत@ प्रभात राय भट्ट

गीत@ प्रभात राय भट्ट
 
सुन सुन रे  सुन पवन पुरबैया 
की लेने चल हमरो अप्पन गाम  
हमर जन्मभूमि वहि ठाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
देश विदेश परदेश घुमलौं
मोन केर भेटल नहीं आराम
साग रोटी खैब रहब अप्पने गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
घर घर में छन्हि बहिन सीता
राजर्षि जनक सन पिता
सभ केर पाहून छथि राम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
काशी घुमलौं मथुरा घुमलौं
घुमलौं मका मदीना
सभ सँ पैघ विद्यापति केर गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
हिमगिरी कोख सँ बहैय कमला कोशी बल्हान
तिरभुक्ति तिरहुत छै जग में महान
दूधमति सँ दूध बहैय छै वैदेहीक गाम
जतय छै  सुन्दर  मिथिलाधाम //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट